
भुसावर के आवलां मुरब्बा की मिठास -भरतपुर के महाराजा विजेन्द्रसिंह को पसन्द था,कोरोना वायरस का प्रभाव,अचार कम ज्यादा बिक रहा मुरब्बा -औषधीय गुण व फायदे से भरपूर

उपखण्ड क्षेत्र के कस्वा भुसावर सहित एक दर्जन से अधिक गांव में आवलां की बागवानी है,जिसके फल से बने मुरब्बा एवं खटटा-मिठा अचार ने स्वाद एवं गुणवक्ता और आवलां के मुरब्बा की मिठास की देश-विदेश में पहचान कायम है। कोरोना संक्रमण काल में भी आवलां की तेजी से मांग आई,जिसका कारण आवलां के औषधीय गुण एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता है और आवलां की बागवानी एवं अचार उद्योग से जुडे लोग के चेहरे पर खिलावट झलकने लगी है। आवलां से बने मुरब्बा,अचार एवं अन्य खाद्य वस्तुए गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष तीन गुना अधिक बिकी।
–क्या कहते है मुरब्बा-अचार वाला
कस्वा भुसावर निवासी ओमप्रकाश गुप्ता एवं लक्ष्मीनारायण ने बताया कि भुसावर की देश-विदेश में पहचान का कारण अचार-मुरब्बा है,यहां दो दर्जन से अधिक अचार–मुरब्बा उद्योग स्थापित है और लम्बे समय से घर-घर में बनाया जाता है। कोरोना संक्रमण के प्रभाव से अचार कम तथा मुरब्बा की मांग अधिक है। आवलां में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण कोरोना काल में अधिक मांग निकली है। गत वर्ष की तुलना में तीन गुना अधिक बिका है,जिसने 30 साल पुराना रिकार्ड तोड दिया। मुरब्बा वाला विजय गुप्ता एवं लक्ष्मण बंसल ने बताया कि आवलां,आम,करोजा,बेल,बांस आदि के मुरब्बा की मांग अधिक है,भाव कम तथा कोरोना वायरस के बचाव के लिए शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाने को लोग मुरब्बा खरीद कर खा रहे है। अचार-मुरब्बा विक्रेता ओमप्रकाश अग्रवाल एवं अंशुल अग्रवाल ने बताया कि शहद वाला मुरब्बा का भाव 250 रू0 से 400 रू0 तक तथा चीनी वाला मुरब्बा 100 रू0 से 200 रू0 तक प्रतिकिलोग्राम है।
-बागवानी से बढा अचार-मुरब्बा उद्योग
भुसावर सहित आसपास के गांव में आम,बेर,आवलां,नींबू,करौजा आदि की बागवानी से अचार-मुरब्बा उद्योग को बढावा मिला है। भुसावर,छौंकरवाडा कलां,सिरस,बल्लभगढ,नगला नाथू,भगवानपुर,फौजीपुरा,तरगवां,वैर,पथैना,बिजवारी,नयावास,लखनपुर,गोठरा,मोरदा,मुहारी,नयागावं खालसा,कारवन,कमालपुरा,बाछरैन आदि में बागवानी लगी हुई है।भरतपुर के महाराजा विजेन्द्रसिंह को पसन्द था मुरब्बा।भुसावर के लक्ष्मीनरायण गुप्ता व विजय गुप्ता ने बताया कि उनके पिता वर्ष 1930 से अचार-मुरब्बा बना कर व्यापार करते थे,जो हमको बताया करते कि भरतपुर के महाराजा विजेन्द्रसिंह को अचार-मुरब्बा पसन्द था,जो नौकर भेज कर प्रति सप्ताह ताजा अचार-मुरब्बा मंगवाते थे। महाराजा विजेन्द्रसिंह वर्ष 1945-46 में भुसावर आए,जिन्होंने भुसावर के व्यापारियों से भरतपुर में बाजार स्थापित की बोला और भरतपुर में बाजार लगवाया। ग्राहकी कम देख भुसावर से गए व्यापारी उदास थे,जिसकी भनक महाराजा विजेन्द्रसिंह को लगी,तो सभी व्यापारियों का अचार-मुरब्बा खरीद कर प्रजा को बांट दिया,तभी से ग्राहकी बढ गई।
–मेला बाजार खुलने का इन्तजारअचार-मुरब्बा वाला ओमप्रकाश गुप्ता एवं विजय गुप्ता ने बताया कि कोरोना वायरस तथा लाॅकडाउन का असर भुसावर के अचार-मुरब्बा उद्योग पर पडा है,देश-विदेश में मेला बाजार बन्द पडे है,जो कब खुलेगें ये पता नही,मांग भी कम आ रही है। मजदूर भी नही मिल रहे है। स्वयं ही बना रहे है,जिसको देख कम मात्रा में अचार-मुरब्बा तैयार किया है। मेला बाजार खुलने का इन्तजार है,जिससे अचार-मुरब्बा उद्योग चालू हो सके।
–आवलां पौषक तत्व का भण्डार
आवलां के गुण एवं स्वाद से भारत में हर व्यक्ति परिचित है,यह सबसे प्राचीन आयुर्वेदिक औषधीय है,देश मे शायद ऐसा कोई होगा,जिसने आवलां का नाम नही सुना हो। आवलां अपने औषधीय गुण के कारण वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय है। घरेलू नुस्खों में आवलां को इस्तेमाल अधिक किया जाता है। आवलां में जीवाणु-रोधी और पौषक तत्व मौजूद है,जिन्हे नजर अंदाज कर पाना कठिन है। आयुर्वेदिक विभाग के सेवानिवृत जिला आयुर्वेद अधिकारी डाॅ0सतीश पालीवाल का कहना है कि आवलां एंटीआॅक्सीडेंट एवं पौषक तत्वों का भण्डार है।
– भगवान श्री विष्णु का अश्रु
भारतीय प्राचीन ग्रन्थ तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार आवलां को भगवान श्री विष्णु का अश्रु(आसंू) कहा गया है,जिस कारण भारत में आवलां के पेड एवं इसके फल की पूजा होती है। आयुर्वेद ग्रन्थ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में आवलां को ऊर्जादायक जडी बूटी के रूप वर्णित किया गया है।आवलां के औषधीय गुण व फायदे
आवलां में औषधीय गुण होने के साथ-साथ इसमें अनेक गुण है,जिनके अनेक फायदे व लाभ है। आवलां से घने,लम्बे,मजबूत बाल होना,दिमाग को तेज बनाना,दाॅत की मजबूती,स्वच्छ श्वसन प्रणाली,गला,पाचन शक्ति,हद्वय,यकृत,हडडी मजबूत,चमकती त्वचा,मोटापा कम,निरापद प्रतिरक्षा,बांझपन,शुद्व रक्त,नाखून मजबूत,बुढापा की गति मन्द,पौषिक नर्सो,मलत्याग आदि के फायदे व लाभ है।